Some Playful Talks of Marriage
चहल-पहल भरे एक आधुनिक मूल्यों वाले विवाह में शिरकत का मौका मिला। पति-पत्नी दोनों पुराने दोस्त थे, लेकिन शादी की गहमागहमी में लड़के को मुंह छिपाकर रोते देख अजीब लगा। अगर आप घर से विद्रोह करके शादी करने जा रहे हों तो इस मौके पर मां-बाप, भाई-बहन की याद आ सकती है। पर यहां ऐसा कोई मामला नहीं था। यहां तो दोनों पक्षों के चचेरे-ममेरे, मौसेरे-फुफेरे परिवार भी जीजा-साला समेत मौजूद थे।
पूछने पर पता चला कि लड़के को यह बात कचोट रही थी कि आज वह अपना अलग परिवार बनाने जा रहा है। सुनकर मुझे खुटका सा हुआ और कुछ ही महीनों बाद संदेह की पुष्टि भी हो गई। कोई परिवार हवा में नहीं बनता। इसके लिए आपको अपना समय, श्रम और भावनाएं लगानी पड़ती हैं। अभी इन चीजों का काफी हिस्सा जीविका जुटाने में चला जाता है। जो बचता है, उस पर नए-पुराने तीनों परिवार बराबर के दावेदार हो जाएं तो फिर या तो नए परिवार का सफाया होगा, या इनके बीच फंसे इंसान का।
इससे पहले मैं अपनी सगी बहन को ऐसे ही हालात में पिसते देख चुका था। मेरे जीजा जी बाकी हर मामले में सही थे, लेकिन जब भी बात अपने से बड़ों को उनकी किसी गलती पर टोकने की आती थी, वे कतरा कर कहीं और निकल जाते थे। उन्हें पता था कि उनकी पत्नी को बात-बात पर ताने दिए जा रहे हैं, उसे समय से पेट भर खाने को नहीं मिल रहा है, लेकिन वे अपनी सारी ऊर्जा मेरी बहन को समझाने में ही लगाते थे। हालत यह हुई कि एक असाध्य बीमारी से ग्रस्त होने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आई, तब भी जीजाजी यही उम्मीद करते रहे कि यह जिम्मेदारी घर के मलिकार यानी उनके बड़े भाई ही उठाएंगे, लेकिन मलिकार के जिम्मे और भी काम थे। तीन साल के विवाहित जीवन में एक स्वस्थ युवती से मरणासन्न बुढ़िया में बदल चुकी मेरी बहन को इलाज के लिए मायके भेज देना ही उन्हें ठीक लगा।
अपने उस मित्र और जीजाजी को लेकर अपनी राय मैं जाहिर कर ही चुका हूं, लेकिन जहां तक खुद उनका सवाल है तो अपने लिजलिजेपन को लेकर कोई असंतोष मुझे उनके अंदर कभी नहीं दिखा। संभव है, स्वयं को आज का श्रवण और लक्ष्मण मानकर वे मन ही मन पुलकित भी होते हों
शादी में सबसे ज़्यादा मस्तीभरा रिवाज़ है जूते चुराना। दूल्हे के जूते छुपाना और बदले में नेग (गिफ्ट) माँगना तो सालीयों का फुल-टाइम काम होता है। दूल्हा बेचारा सोचता रह जाता है – “शादी तो कर ली… लेकिन जूते कब मिलेंगे?”
शादी की बारात में नाच-गाना तो जैसे अनिवार्य है। कोई घोड़ी के सामने ठुमके लगाता है तो कोई बैंड पर ही DJ वाला गाना डांस कर देता है। बारात का नाच ही शादी की रौनक बढ़ा देता है।
कहते हैं कि शादी के बाद दूल्हे की असली टक्कर सालीयों से होती है। उनकी नटखट बातें और हंसी-ठिठोली पूरे माहौल को मजेदार बना देती है।
👉 “जीजा जी, अब आपकी लाइफ़ का रिमोट हमारी बहन के हाथ में है।”
सच बताइए, कई मेहमान तो शादी में सिर्फ खाने के लिए ही आते हैं। “पहले जलेबी-फाफड़ा या पहले पंजाबी छोले-भटूरे?” यही सबसे बड़ी दुविधा होती है।
जहाँ पंडित जी गंभीर मंत्र पढ़ रहे होते हैं, वहीं दोस्त और रिश्तेदार अपनी नटखट कमेंट्री कर रहे होते हैं –
“अब तो भाई, तेरा ओवरस्टेपिंग करना मना है।”