“Why do families prefer early marriage of daughters instead of focusing on their education?”
जब असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया, तो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि समस्या की जड़ यानी महिलाओं की शिक्षा तक सीमित पहुंच पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आँकड़े दिखाते हैं कि उच्च शिक्षा का स्तर, संपत्ति की तुलना में, महिलाओं की शादी में देरी करने में बड़ा योगदान दे सकता है। आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि ग्रामीण और शहरी महिलाओं, तथा दलित और उच्च जाति की महिलाओं के वैवाहिक आयु में बड़ा अंतर है।
शिक्षा का महत्व:
शिक्षा लंबे समय से महिलाओं की शादी में देरी करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक रही है।
उदाहरण: NFHS आंकड़ों के अनुसार शिक्षा का प्रभाव स्थिर रहा है, जबकि समय के साथ गरीबी का प्रभाव बढ़ा है।
गरीबी:
गरीबी शुरुआती शादी का सबसे बड़ा निर्धारक है। गरीब परिवार जल्दी शादी इसलिए कर देते हैं क्योंकि दहेज की मांग बढ़ती जा रही है। अमीर लोग अब अपनी बेटियों की जल्दी शादी नहीं कर रहे हैं।
भारत में विवाह का सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है।
सबसे महत्वपूर्ण संस्था: बेटियों के लिए विवाह को सबसे अहम जिम्मेदारी माना जाता है, जबकि बेटों के लिए नौकरी बसाने की जिम्मेदारी होती है।
सामाजिक पहचान: विवाह सामाजिक पहचान से जुड़ा है। अविवाहित रहना असामान्य माना जाता है क्योंकि लगभग हर कोई शादी करता है।
यौन सम्मान: समाज में सम्मान पाने के लिए विवाह आवश्यक माना जाता है। विवाह के बाहर यौन संबंध सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हैं।
वैध संतान: भारतीय समाज में बिना विवाह के संतान पैदा करना स्वीकार्य नहीं है।
दहेज का बोझ: जितनी अधिक लड़की पढ़ी-लिखी होगी, उतना अधिक पढ़ा-लिखा लड़का चाहिए और उतना ही दहेज भी बढ़ता है। जल्दी शादी करना परिवार को आर्थिक रूप से कम बोझिल लगता है।
जिम्मेदारी का हस्तांतरण: शादी से पहले लड़की की सुरक्षा परिवार की जिम्मेदारी होती है, शादी के बाद यह जिम्मेदारी लड़के के परिवार की हो जाती है। इसलिए शिक्षा पर खर्च करने से बचा जाता है।
जाति और समाज की मर्यादा: कई संस्कृतियों में अपनी जाति और समुदाय में ही शादी करना जरूरी माना जाता है। जल्दी शादी करके इस परंपरा को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।
लाभ:
शिक्षा से महिलाओं को ज्ञान और कौशल मिलता है, जिससे वे अपने जीवन से जुड़े फैसले बेहतर ढंग से ले पाती हैं।
शिक्षित महिलाएं नौकरी में अधिक भागीदारी करती हैं, बेहतर आय अर्जित करती हैं और स्वास्थ्य परिणाम भी अच्छे रहते हैं।
शिक्षा लैंगिक असमानता और रूढ़िवादिता को चुनौती देती है।
शिक्षा महिलाओं को परिवार और समाज में अधिक bargaining power देती है।
चुनौतियाँ:
महिला श्रम भागीदारी दर केवल 25% है।
शिक्षित होने के बावजूद बहुत सी महिलाएं बेरोजगार हैं।
कॉर्पोरेट क्षेत्र में जाने वाली महिलाएं घरेलू और पेशेवर जीवन संतुलित करने में कठिनाई झेलती हैं।
घरेलू जिम्मेदारियाँ अब भी ज्यादातर महिलाओं पर ही रहती हैं।
विवाह की उम्र बढ़ाने से हमेशा महिलाओं को स्वतः स्वतंत्रता या अधिकार नहीं मिलते।
शादी में देरी से शिक्षा और करियर का मौका बढ़ता है, लेकिन रोजगार और आय में लैंगिक अंतर बना हुआ है।
रोजगार दर कम होने के कारण विवाह अब भी महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा का साधन माना जाता है।
सामाजिक-आर्थिक कारक: इन समुदायों की महिलाएं अक्सर गरीब परिवारों से आती हैं और शादी की उम्र अपेक्षाकृत कम रहती है।
सामाजिक हीनता की भावना: विवाह बाजार में इन समुदायों के परिवारों को हीनता का अनुभव होता है।
जाति और गरीबी का संबंध: इन वर्गों में गरीबी अधिक है, रोजगार के अवसर सीमित हैं और वे हिंसा के भी शिकार होते हैं।
असुरक्षा: विशेष रूप से दलित लड़कियां यौन हिंसा की अधिक शिकार होती हैं। इसलिए परिवार शादी को सुरक्षा का साधन मानते हैं।
यह पूरा विश्लेषण दिखाता है कि शिक्षा, गरीबी, सामाजिक संरचना और लैंगिक असमानता – सब मिलकर महिलाओं की शादी की उम्र और उनके सशक्तिकरण को प्रभावित करते हैं।
27th August, 2025